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नज़्म
जिस में कि ख़ूब-ओ-ज़िश्त का मद्द-ओ-जज़र है साफ़ साफ़
मंज़र-ए-दोज़ख़-ओ-बहिश्त पेश-ए-नज़र है साफ़ साफ़
मीर यासीन अली ख़ाँ
नज़्म
इस सुकूत-ए-आरज़ी पर ख़ुश न हो जाना कहीं
तू ने मद्द-ओ-जज़्र मौजों का अभी देखा नहीं