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नज़्म
किसी को दर्द में देखे तो दिल में दर्द पैदा हो
किसी मजबूरी-ए-हालत पे आह-ए-सर्द पैदा हो
नारायण दास पूरी
नज़्म
हिचकिचाए एक लम्हा चुप रहे फिर एक आह-ए-सर्द भर कर
ज़ेर-ए-लब बोले क़ुबूलिय्यत की कोई हद नहीं है
सत्यपाल आनंद
नज़्म
होंटों पे आह-ए-सर्द जबीं पर ग़ुबार-ए-राह
हैं इस ज़मीं पे ख़ाक-बसर कितने मेहर-ओ-माह
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
तो है अक्कास-ए-अज़ल फ़ितरत में तेरी दर्द है
गो ब-ज़ाहिर ख़ुश है लेकिन लब पे आह-ए-सर्द है
साक़िब कानपुरी
नज़्म
न ज़ौक़-ए-तेग़-ए-नाज़ है न शौक़-ए-नावक-ए-नज़र
न नाला-ए-हज़ीं-रसा न आह-ए-सर्द में असर
क़ैसर अमरावतवी
नज़्म
हुई जाती है नज़्र-ए-शोरिश-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां उर्दू
कहे किस से यहाँ अपने ग़मों की दास्ताँ उर्दू
रहबर जौनपूरी
नज़्म
आह-ए-दिल-ए-मुज़्तर की तासीर नज़र आई
क्या ख़्वाब-ए-मोहब्बत की ता'बीर नज़र आई