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नज़्म
कभी कभी तो दरख़्तों की तादाद इतनी बढ़ जाती है
कि मुझे गुज़िश्ता दिन के आदाद ओ शुमार पर
सईदुद्दीन
नज़्म
कसीर वादे क़लील उम्रें
अबस हिसाब-ओ-शुमार उस का जो गोश्त इस साल नाख़ुनों से जुदा हुआ है