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नज़्म
इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये हिन्दी वो ख़ुरासानी ये अफ़्ग़ानी वो तूरानी
तू ऐ शर्मिंदा-ए-साहिल उछल कर बे-कराँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ ख़ाक-नशीनो उठ बैठो वो वक़्त क़रीब आ पहुँचा है
जब तख़्त गिराए जाएँगे जब ताज उछाले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
उन का आँचल है कि रुख़्सार कि पैराहन है
कुछ तो है जिस से हुई जाती है चिलमन रंगीं