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नज़्म
वो है ताबीर का अफ़्लास जो ठहरा है फ़न मेरा
सुख़न यानी लबों का फ़न सुख़न-वर यानी इक पुर-फ़न
जौन एलिया
नज़्म
जब आधा दिन ढल जाता है तो घर से अफ़सर आता है
और अपने कमरे में मुझ को चपरासी से बुलवाता है
मीराजी
नज़्म
बेटा कहता था कि मैं सरकारी अफ़सर हूँ जनाब
रोज़ा रक्खूँगा तो मुझ से माँगा जाएगा जवाब
दिलावर फ़िगार
नज़्म
भारत प्यारा देश हमारा सब देशों से न्यारा है
हर रुत हर इक मौसम इस का कैसा प्यारा प्यारा है
हामिदुल्लाह अफ़सर
नज़्म
वो जो पहले था कभी बंदर मदारी बन गया
या'नी मज़दूर अफ़सर-ए-सरमाया-कारी बन गया
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
या फिर नज़्म है इक चूहे पर हामिद-'मदनी' का शहकार
कोई नहीं है अच्छा शायर कोई नहीं अफ़्साना-निगार
हबीब जालिब
नज़्म
हम जो इक जाँ के सफ़र पर हैं रवाँ बरसों से
हम को मालूम नहीं कब और कहाँ ख़त्म हो ये