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नज़्म
निगाह-ए-अहल-ए-दिल में फ़ाश करती हैं मुझे जैसे
मिरी मजबूरियाँ जिन की प्यास रंज-ए-महरूमी
क़य्यूम नज़र
नज़्म
क़य्यूम नज़र
नज़्म
समुंदरों की सत्ह भी नज़र न आई दूर-दूर
वसीअ' आसमान में उड़ान भर के थक गया था फिर ज़मीन पर रुका
बदनाम नज़र
नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
जिस को हैराँ देख कर हैं आज भी अहल-ए-शुऊ'र
फ़ौज-ए-रावन ला-तअ'द थी रेग-ए-सहरा की तरह
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
नज़्म
अहल-ए-दानिश 'आम हैं कमयाब हैं अहल-ए-नज़र
क्या त'अज्जुब है कि ख़ाली रह गया तेरा अयाग़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आज असेंबली हॉल के बाहर अहल-ए-नज़र का मेला देखा
मेम्बर ख़ातूनें भी देखीं और उन के घर वाले देखे