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नज़्म
टुकड़े होता है जिगर देहली के सदमे सुन के 'ऐश'
और दिल फटता है सुन कर हाल-ए-ज़ार-ए-लखनऊ
हकीम आग़ा जान ऐश
नज़्म
बे-नियाज़-ए-'ऐश-ओ-'इशरत आश्ना-ए-दर्द-ओ-ग़म
एक मुश्त-ए-उस्तुख़्वाँ आशुफ़्ता-रौ बा-चश्म-ए-तर
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
ज़वाल होता है कैसे ये देख मग़रिब को
जुमूद-ए-'ऐश-ओ-तरक़्क़ी से हैं निढाल ये लोग
अख़लाक़ अहमद आहन
नज़्म
मुझे शिकवा नहीं उफ़्तादगान-ए-ऐश-ओ-इशरत से
वो जिन को मेरे हाल-ए-ज़ार पर अक्सर हँसी आई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
न सामान-ए-ऐश-ओ-तरब न हूर-ओ-क़ुसूर माँगूँगा
न रुस्वाई से बचने की न इज़्ज़त आबरू की ख़्वाहिश है
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
फ़ज़ा-ए-दहर लबरेज़-ए-मसर्रत है तो मुझ को क्या
अगर दुनिया ख़राब-ए-ऐश-ओ-इशरत है तो मुझ को क्या