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नज़्म
मक़ाम-ए-अज़्मत-ए-इंसाँ को तू ने फ़ाश किया
जुमूद-बस्ता ग़ुलामी को पाश-पाश किया
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
मुझे तो इंतिज़ार-ए-इश्क़ में ही लुत्फ़ आता है
किसी की चाहतों का रंग हर धड़कन पे तारी हो
अलीना इतरत
नज़्म
हम चाँद नगर पर जाते ही खोलेंगे एक नया मकतब
ता'लीम न होगी जिस में कभी सब आज़ादी से घूमेंगे