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नज़्म
ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें हम भूले हुओं को याद न कर
पहले ही बहुत नाशाद हैं हम तू और हमें नाशाद न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
उम्र यूँ मुझ से गुरेज़ाँ है कि हर गाम पे मैं
इस के दामन से लिपटता हूँ मनाता हूँ इसे
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ये मुझ से पूछता है अख़्तर-उल-ईमान तुम ही हो
ख़ुदा-ए-इज़्ज़-ओ-जल की नेमतों का मो'तरिफ़ हूँ मैं
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कोई सूरत बना करती है जिस से शक्ल-ए-इंसानी
हर इक चेहरे को इस ख़ूबी से आरी देखता हूँ मैं
अख़तर बस्तवी
नज़्म
अख़तर बस्तवी
नज़्म
अख़तर बस्तवी
नज़्म
कि अब शहरों में मार ओ अज़दर ओ कर्गस नहीं मिलते
कुतुब-ख़ानों में अफ़्क़ार-ओ-अक़ाएद जल्वा-फ़रमा हैं
सहर अंसारी
नज़्म
मुन्ना आग़ूँ आग़ूँ कर के जब भी अपने पास बुलाए
धम से आँगन में आ कूदे 'अख़्तर' रंग-रंगीला चाँद
अलीम अख़्तर मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
यहीं वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
पयाम दर्द-ए-दिल 'अख़्तर' दिए जाता हूँ वादी को
अख़्तर शीरानी
नज़्म
ज़ेहन-ए-आदम में है अफ़्कार की दुनिया आबाद
क़ल्ब-ए-इंसाँ में अमानत हैं अभी ग़म कितने