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नज़्म
क्या कहूँ 'शाहिद' किसी से थी ये ऐसी ग़म की शाम
दिल में सोज़-ए-ना-मुकम्मल लब पे आह-ए-ना-तमाम
शाहिद सागरी
नज़्म
सुने हर एक हर मक़ाम पर पयाम इल्म का
हो शहर शहर गाँव गाँव इंतिज़ाम इल्म का
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
अम्मी मेरा चाँद तो देखो बालू-शाही जैसा है
निकहत बाजी का है कैसा कड़वा और कसीला चाँद