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नज़्म
तुझे मुफ़लिसी न पसंद थी तिरी राह-ए-स’ई न बंद थी
तिरी हिम्मत ऐसी बुलंद थी कि निसार उस पे थीं हिम्मतें
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
फिर चली है रेल स्टेशन से लहराती हुई
नीम-शब की ख़ामुशी में ज़ेर-ए-लब गाती हुई