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नज़्म
उन ज़मानों में सपने साँपों के बिल नहीं थे
अनंत नागा की झड़ती चमड़ी संपोलियों का ख़ुदा नहीं थी
रज़ी हैदर गिलानी
नज़्म
ये तुम्हारे हाथों में दिल थमा ही इसी लिए रहा है कि तुम इसे तोड़ दो
भले टूट जाओगी ख़ुद भी तुम
अनन्त फ़ानी
नज़्म
क़ौम-ए-आवारा इनाँ-ताब है फिर सू-ए-हिजाज़
ले उड़ा बुलबुल-ए-बे-पर को मज़ाक़-ए-परवाज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
एक रख़्शर-ए-बे-अनाँ की बर्क़-रफ़्तारी के साथ
ख़ंदक़ों को फाँदती टीलों से कतराती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मशरिक़ का दिया गुल होता है मग़रिब पे सियाही छाती है
हर दिल सन सा हो जाता है हर साँस की लौ थर्राती है