aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "anjaan"
क्या समझे थे और तू क्या निकला ये सोच के ही हैरान हैं हमहै पहले-पहल का तजरबा और कम-उम्र हैं हम अंजान हैं हम
हैं लाखों रोग ज़माने में क्यूँ इश्क़ है रुस्वा बे-चाराहैं और भी वजहें वहशत की इंसान को रखतीं दुखियारा
दिल के दामन से लिपटती हुई रंगीं नज़रेंदेखते देखते अंजान भी हो जाती हैं
मैं तिरे शहर में अंजान हूँ परदेसी हूँतेरे अल्ताफ़ का मफ़्हूम समझ लूँ तो कहूँ
कुछ माँझी थे अंजान बहुतकुछ बे-परखी पतवारें थीं
बहुत याद आता है गुज़रा ज़मानामोहब्बत से यकसर है अंजान दुनिया
अंजान नगर से आई थीअंजान नगर में खो गई माँ
ऐसे सब रास्ते छोड़ केएक अंजान पगडंडी की उँगली थामे हुए
फिर भी चुप चुप सा रहता हूँ जैसे बहुत अंजान हूँ मैंजाने क्यूँ ऐसा हूँ मैं
और कहीं दूर से अंजान गुलाबों की बहारयक-ब-यक सीना-ए-महताब को तड़पाने लगे
मुझ को एहसास दिलाती हैं कि अब उस के लिएमैं भी अंजान हूँ, इक आम तमाशाई हूँ
वही सरसराती हवा जो हर अंजान औरत के बिखरे हुए गेसुओं कोकिसी सोए जंगल पे गनघोर काली घटा का नया भेस दे कर
पर कहा न वो आम न थीखुद से वो अंजान न थी
बरखा-रुत है और जवानी लहरों का तूफ़ानपीतम है नादान मिरा दिल रस्मों से अंजान
और फिर अंजान अपनी अन-जानी हँसी में हँसाक़हक़हे का पत्थर संग-रेज़ो में तक़्सीम हो गया
समेटने भी न मुझ को आएँअजब है अंजान-पन भी उन का
दिसम्बर की हवा के संगकुछ अंजान सी यादें
जिस के उस पार झलकता नज़र आता है मुझेमंज़र अंजान, अछूती सी दुल्हन की सूरत
क्यूँ सिर्फ़ अछूताअंजान अनोखा
मगर महसूस होता था हमेशा पास रहती हैजो वो अंजान बनती थी
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