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नज़्म
उस शाम मुझे मालूम हुआ जब बाप की खेती छिन जाए
ममता के सुनहरे ख़्वाबों की अनमोल निशानी बिकती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह
तू ने दुनिया की निगाहों से जो बच कर लिक्खे
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
किसी के शहर को दरयाफ़्त करने में
किसी अनमोल साअत में किसी नाराज़ साथी को ज़रा सा पास लाने में
असग़र नदीम सय्यद
नज़्म
जो कुछ है अनमोल है अब तक एक इक लम्हा एक इक पल
बिन छूई मिट्टी की ख़ुशबू उस का सूँधा सूँधा-पन
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
हर इक क़तरा-ए-आब अनमोल है गौहर-ए-बे-बहा है
मैं हस्ती के साहिल का मबहूत-ओ-हैराँ मुसाफ़िर
जमील मलिक
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
अम्मी अब्बू की बातों का जो जो नतीजा भोग रहा हूँ
आग़ा के अनमोल से मोती देख के सब हँसते हैं लोग
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
''मैं ने सब से अनमोल ख़्वाब तुम्हारी आँखों में सजाया था''
ये कह कर शब ने हर आँख में छापे मारे