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नज़्म
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाए जाएगी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तिरे पहलू में कितनी ही अनोखी वारदातें हैं
तिरे होंटों पे कितनी ही तबस्सुम-रेज़ बातें हैं
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
जम्अ' हुए हैं चौराहों पर आ के भूके और गदागर
एक लपकती आँधी बन कर एक भबकता शो'ला हो कर