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नज़्म
ये बातें झूटी बातें हैं ये लोगों ने फैलाई हैं
तुम 'इंशा'-जी का नाम न लो क्या 'इंशा'-जी सौदाई हैं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
रक़ीब हो तो किस लिए तिरी ख़ुद-आगही की बे-रिया नशात-ऐ-नाब का
जो सद-नवा ओ यक-नवा खिराम-ऐ-सुब्ह की तरह
नून मीम राशिद
नज़्म
चराग़-ए-दैर फ़ानूस-ए-हरम क़िंदील-ए-रहबानी
ये सब हैं मुद्दतों से बे-नियाज़-ए-नूर-ए-इर्फ़ानी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अबद तक जिस का फ़ैज़ान-ए-करम जारी रहेगा
यक़ीं के आगही के रौशनी के क़ाफ़िले हर दौर में आते रहे हैं