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नज़्म
मुझे उस वक़्त 'अरशद' क्यों मिरी माँ याद आती है
किसी कुटिया में देखूँ जब किसी लाचार औरत को
अरशद महमूद अरशद
नज़्म
सूखे होंट जब प्यास की ज़बान में बात करते हैं
तो उम्मीद की शाख़ पर आती है पहली पत्ती
इरशाद कामिल
नज़्म
और कहा हद हो चुकी है कुफ़्र की इल्हाद की
एक दुनिया मुंतज़िर है आप के इरशाद की
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
आप का इरशाद सर-आँखों पे लेकिन डर ये है
चुभ न जाए फाँस बन कर दिल में ये नाज़ुक सी शय
शातिर हकीमी
नज़्म
शीला ने अरशद की ले ली जा के हाथ में कलाई
फिर ये बोली रक्षा-बंधन आज ही है मिरे भाई