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नज़्म
ठुमक ठुमक के चले थे घरों के आँगन में
'अनीस' ओ 'हाली' ओ 'इक़बाल' और 'वारिस-शाह'
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
अभी कुछ दिन लगेंगे ख़्वाब को ताबीर होने में
किसी के दिल में अपने नाम की शम्अ जलाने में
असग़र नदीम सय्यद
नज़्म
'असगर'-ओ-'अकबर'-ओ-'अहसन' की भी दम-साज़ हूँ मैं
जिस को 'तुलसी' ने बजाया था वही साज़ हूँ मैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
जैसी ज़िंदगी हम गुज़ारते हैं वैसी मौत हमें मिलती है
हम बुज़दिल आदमी की ज़िंदगी गुज़ारते हैं
असग़र नदीम सय्यद
नज़्म
कभी मुँह से आवाज़ हाथों से क़िस्मत और आँखों से पहली मसर्रत का पानी गिरे
तो उसे मत उठाना