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नज़्म
ऐ कि दिल तेरा है फ़िक्र-ए-बादा-ए-गुलफ़ाम में
ज़हर भी होता है अक्सर ख़ूबसूरत जाम में
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
रक़्स में पैमाना है ख़ाली नहीं हैं जाम अभी
दिल है सरमस्त-ए-ख़ुमार-ए-बादा-ए-गुलफ़ाम अभी
अली मीनाई
नज़्म
अब किसी के जाल में ये क़ैद हो सकता नहीं
था 'असर' जिस का असीर-ए-दाम रुख़्सत हो गया
शाहीन इक़बाल असर
नज़्म
रक़्स अंगड़ाइयाँ लेता है तिरी बाँहों में
हैरत-आसार है क्यूँ चश्म-ए-फ़ुसूँ-बार तिरी
सैफ़ुद्दीन सैफ़
नज़्म
रक़्स अंगड़ाइयाँ लेता है तिरी बाँहों में
हैरत-आसार है क्यों चश्म-ए-फ़ुसूँ-बार तिरी
सैफ़ुद्दीन सैफ़
नज़्म
शराब-ए-नौ की मस्तियाँ, कि अल-हफ़ीज़-ओ-अल-अमाँ
मगर वो इक लतीफ़ सा सुरूर-ए-बादा-ए-कुहन