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नज़्म
जो ग़म सिवा हो तो तू क्या करे है मेरे ख़ुदा
यहाँ तो अश्क फ़शाँ मोमिन और काफ़र है
मोहम्मद ओवैस ख़ाँ
नज़्म
जहाँ में दानिश ओ बीनिश की है किस दर्जा अर्ज़ानी
कोई शय छुप नहीं सकती कि ये आलम है नूरानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रहेगा तुंद-ख़ू सूरज जहाँ पर हुक्मराँ कब तक
रहेंगे ख़ाक के ज़र्रे फ़ज़ा में पुर-फ़िशाँ कब तक
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
अगर ऐ शम'-ए-दिल जलना ही था तुझ को तो जलना था
किसी बेकस की तुर्बत पर चराग़-ए-नीम-जाँ हो कर
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
सर्द ओ ताबिंदा सी पेशानी वो मचले हुए अश्क
दिन में नूर-ए-माह-ओ-अंजुम के सिवा कुछ भी न था
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझ से
जिस ने इस दिल को परी-ख़ाना बना रक्खा था