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नज़्म
सुब्ह-दम बाद-ए-सबा की शोख़ियाँ काम आ गईं
लाला-ओ-गुल को बग़ल-गीरी का मौक़ा मिल गया
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
तुम्हारी बज़्म ज़ेहन-ओ-फ़िक्र की आराइशें की हैं
हम ऐसे ही असीर-ए-गुल असीर-ए-जाम लोगों ने
सलाम मछली शहरी
नज़्म
अब किसी के जाल में ये क़ैद हो सकता नहीं
था 'असर' जिस का असीर-ए-दाम रुख़्सत हो गया
शाहीन इक़बाल असर
नज़्म
उसी के दम से सारा गुल्सिताँ फ़िरदौस-मंज़र था
चमन में इंहिसार-ए-मौसम-ए-गुल तक उसी पर था
ऋषि पटियालवी
नज़्म
सारी रौनक़ गुलशन-ए-आलम की तेरे दम से है
ताज़गी-ए-सब्ज़ा-ओ-गुल क़तरा-ए-शबनम से है
हामिद हसन क़ादरी
नज़्म
कोई दम में इस गुलिस्ताँ से निकलना है हमें
फ़र्श-ए-गुल से दूर अँगारों पे चलना है हमें
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जिस की जाँकाही से टपकाती है अमृत नब्ज़-ए-ताक
जिस के दम से लाला-ओ-गुल बन के इतराती है ख़ाक
जोश मलीहाबादी
नज़्म
जो कुछ ख़ूबी में है उस शोख़-ए-गुल-रुख़्सार की राखी
फिरें हैं राखियाँ बाँधे जो हर दम हुस्न के तारे
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जो पस-ए-ग़ुबार चहार-सम्त से आ के मेरा हलाक हो
जो दम शगुफ़्त-ए-गुल-शफ़क़ मेरी कुहनियों से क़रीब हो
मोहम्मद अनवर ख़ालिद
नज़्म
अपने ही ज़ौक़-ए-तबस्सुम में गिरफ़्तार-ओ-असीर
ज़र्द चेहरे पे मिले ग़ाज़ा-ए-गुल-ए-रंग की धूल
फ़रीद इशरती
नज़्म
सुकूत और शांति के हर क़दम पर फूल बरसाती
असीर-ए-काकुल-ए-शब-गूँ बना कर मुस्कुराती है