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नज़्म
पूछ लो इस से तुम्हारा नाम क्यूँ ताबिंदा है
'डायर'-ए-गुर्ग-ए-दहन-आलूद अब भी ज़िंदा है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मैं लौट आया मगर सरासीमा इस तरह से
कि पिछले क़दमों पलट के देखा न गुज़रे रस्तों के फ़ासलों को
अली अकबर नातिक़
नज़्म
तुम्ही बताओ कि इस खंडर में जहाँ पे मकड़ी की सनअतें हों
जहाँ समुंदर हों तीरगी के
अली अकबर नातिक़
नज़्म
मंज़िल-ए-मक़्सूद तक ये क़ौम जा सकती नहीं
जिस के क़ब्ज़े में नहीं अस्प-ए-सियासत की लगाम
अर्श मलसियानी
नज़्म
अस्प ईराँ में अरब में फ़रस कहलाता है ये
और हिन्दोस्तान में घोड़ा कहा जाता है ये
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं
तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर