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नज़्म
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
नज़्म
अब जब शाम हो गई है तो शराब पीने का मन होता है
मेरे दाग़-ए-दिल में एक चराग़ ऐसा भी है
अमित ब्रिज शॉ
नज़्म
सबक़ बस खेलने खाने का जिस को याद होता है
बड़ा हो कर वो लड़का एक दिन उस्ताद होता है
मुश्ताक़ अहमद नूरी
नज़्म
क्या हुआ गर मर गए अपने वतन के वास्ते
बुलबुलें क़ुर्बान होती हैं चमन के वास्ते
कुंवर प्रताप चंद्र आज़ाद
नज़्म
बि-हम्दिल्लह चमक उट्ठा सितारा मेरी क़िस्मत का
कि तक़लीद-ए-हक़ीक़ी की अता शाह-ए-शहीदाँ की