aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "athar azeez"
घर की छत पर बैठा कब सेइक कव्वा
अब आँखें तो खोलोअब आँखें तो खोलो
हर नई शाम नया ख़्वाब सजाती जाएख़्वाब इक सैल-ए-फ़ुग़ाँ शो'ला-ए-ग़म
हर तरफ़ एक पुर-असरार सी तारीकी हैकोई आहट नहीं आवाज़ नहीं शोर नहीं
दोस्त ऐ दोस्त मुझे इतना बता दे तो सहीआज की शाम ये चेहरे पे उदासी कैसी
नफ़स नफ़स से नवा-ए-ग़म की अजीब लहरें उभर रही हैंकभी ये लहरें सुकूत-ए-शब को झिंझोड़ती हैं
अगर तुम देख सकते होतो ये देखो
नींद में कितना भला लगता है कितना सुंदरसोने वाले को ना छेड़ो
अगर मैं इत्तिफ़ाक़न उस के चमकीले परों को छू भी लूँमुझ को यक़ीं है
मेरे ग़म में शरीक होनेऔर मुझे दिलासा देने को
बस्तियाँ उजड़ गईंख़ाक-ओ-ख़ूँ से भर गईं
मुझे अपने शहर से प्यार हैन सही अगर
आज की रात भीदर कोई वा नहीं
पीने वाले दहन लब-ए-दरियाप्यास बुझने के मंज़रों का फ़िशार
अज़ीज़ो!अगर रात रस्ते में आए
अज़ीम माँतू ने अपने बेटों को
कब से ये बार-ए-गराँअपने काँधों पे उठाए हुए तन्हा तन्हा
पानी अच्छा ख़ासा गले तक आ पहुँचा थाअच्छी ख़ासी डूब गई थी सारी बस्ती
कल का गुज़रा हुआ दिन फिर मिरे घर आया हैना-गहाँ सीने का हर दाग़ उभर आया है
नज़र उठा के ज़रा देख ऐ मता'-ए-जाँहमारे सर पे जुदाई का वक़्त आ पहुँचा
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