aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "avval-e-shab"
शहर-ए-दिल की गलियों मेंशाम से भटकते हैं
सोने लगती है सर-ए-शाम ये सारी दुनियाइन के हुजरों में न दर है न दरीचा कोई
चराग़ राह में उस के अमल से जलने लगेलो आज सुब्ह-ए-शब-ए-इंतिज़ार आ ही गई
उजाला सा उजाला है तिरी शम-ए-हिदायत काशब-ए-तीरा में भी इक रौशनी महसूस होती है
किस तरह आएगी जिस रोज़ क़ज़ा आएगीशायद इस तरह कि जिस तौर कभी अव्वल-ए-शब
ख़ुशबू भी उड़ीऔर गेसु-ए-शब में जा उलझी
सुर्ख़ी-ए-अव्वल-ए-शामऔर ये जाम
तेज़ भगा केअव्वल आए
नय इब्तिदा कोई न कोई इंतिहा तिरीआज़ाद क़ैद-ए-अव्वल-ओ-आख़िर ज़िया तिरी
और हर कुश्ता-ए-वामाँदगी-ए-आख़िर-ए-शबभूल कर साअत-ए-दरमांदगी-ए-आख़िर-ए-शब
मोहब्बत की दौड़ में अव्वल आ जाती हैंअजीब शहर है दुश्मन तो हँस के मिलता है
मुसाफ़िर-ए-रह-ए-सहरा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब सेअब इल्तिफ़ात-ए-निगार-ए-सहर की बात सुनो
अम्मी कहतीं बर्गर छोड़ो घर की सब्ज़ी रोटी खाओअब्बू कहते अपने दर्जे में कम अज़ कम अव्वल आओ
तैरने नहीं देतारेग-ए-साहिल-ए-शब पर
और अबग़ुबार-ए-रोज़-ओ-शब के
रौज़न-ए-दीवार-ए-शबख़ुश-अदा पुरकार है
मुझे भी आज तक न मिल सकातमाशा-गाह-ए-रोज़-ओ-शब का बीज
यकायक ख़लाओं की पहनाइयों मेंपस-ए-पर्दा-ए-शब से
रौज़न-ए-दीवार-ए-शबख़ुश-अदा पुर-कार है
हुजूम-ए-रोज़-ओ-शब मेंकिस जगह सहमा हुआ हूँ मैं
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