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नज़्म
तमाम-उम्र दिल-ए-ख़ुद-निगर की नज़्र हुई
अधूरे ख़्वाब हैं दामन में तिश्ना-लब बातें
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
नज़्म
वही है शोर-ए-हाए-ओ-हू, वही हुजूम-ए-मर्द-ओ-ज़न
मगर वो हुस्न-ए-ज़िंदगी, मगर वो जन्नत-ए-वतन