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नज़्म
फ़ितरत-ए-हस्ती कोई सहरा-ए-नौ ईजाद कर
वुसअ'त-ए-आलम ब-क़द्र-ए-यक-फ़ुग़ाँ पाता हूँ मैं
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ तकमील-ए-तमन्ना की तमन्ना है
इसी आग़ोश में मेराज-ए-फ़र्दा की तमन्ना है
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
जहाँ पहला क़दम रक्खा था रोज़-ए-अव्वलीं हम ने
नहीं सरके इस अपने असली मरकज़ से ब-क़द्र-ए-मू
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
दिया है रब ने तो बे-शक तुम उस को ख़र्च करो
मगर ब-क़द्र-ए-ज़रूरत हो बे-हिसाब न हो
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
क़द्र-ए-जवाहर-ए-हसीं देख ब-चश्म-ए-ग़ौर तू
वर्ना हज़ार ज़िल्लतें तेरे लिए हैं और तू