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नज़्म
मिरे जज़्बात की देवी मिरे अशआर की मलका
वो मलका जो ब-रंग-ए-अज़्मत-ए-शाहाना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
कभी साथ अपने उस के आस्ताँ तक मुझ को तू ले चल
छुपा कर अपने दामन में ब-रंग-ए-मौज-ए-बू ले चल
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अब कहाँ वो कुंज-ए-दिल-कश अब कहाँ राधा का ऐश
है ब-रंग-ए-ख़ंदा-ए-गुल बे-बक़ा दुनिया का ऐश
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
मिला है सब्ज़ा-ए-नौ-ख़ेज़ को क्या रंग-ए-ज़ंगारी
हवा लगने से जिस की ज़ख़्म-ए-दिल लाला के भरते हैं
नज़्म तबातबाई
नज़्म
रंग-ए-गुल देख के दिल क़ौम का दीवाना हुआ
जो था बद-ख़्वाह-ए-चमन सब्ज़ा-ए-बेगाना हुआ
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
सुर्ख़ ओ कबूद बदलियाँ छोड़ गया सहाब-ए-शब!
कोह-ए-इज़म को दे गया रंग-ब-रंग तैलिसाँ!