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नज़्म
ब-ज़ोम-ए-ख़्वेश अपने दौर के सुक़रात-ए-सानी हैं
मुक़द्दस लोग हैं 'अहमद-रज़ा-ख़ाँ’ की निशानी हैं
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
हो मगर जिस की रग-ओ-पै में मोहब्बत सारी
जिस के एहसास पे हो नश्शा-ए-उल्फ़त तारी
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
हैं ब-ज़ोम-ए-ख़ुद मुहक़क़िक़ आप हिन्दोस्तान के
आप ने नुक़्ते गिने हैं 'मीर' के दीवान के
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
और ये तर्क-ए-मोहब्बत की सज़ा है शायद
आज मैं ख़ुद से गुरेज़ाँ हूँ मगर ज़िंदा हूँ
मोहम्मद शामिमुज्जामा
नज़्म
अहद-ए-वफ़ा या तर्क-ए-मोहब्बत जो चाहो सो आप करो
अपने बस की बात ही क्या है हम से क्या मनवाओगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
बया ता-गुल बा-अफ़ोशनीम ओ मय दर साग़र अंदाज़ेम
फ़लक रा सक़्फ़ ब-शागाफ़ेम ओ तरह-ए-दीगर अंदाज़ेम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरी हस्ती आसमान-ए-तर्क का माह-ए-तमाम
तू मोहब्बत हर नफ़स तेरा मोहब्बत का पयाम
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
''ख़लल-पज़ीर बुअद हर बिना कि मय-बीनी
ब-जुज़ बिना-ए-मोहब्बत कि ख़ाली अज़-ख़लल-अस्त''