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नज़्म
जब्र से नस्ल बढ़े ज़ुल्म से तन मेल करें
ये अमल हम में है बे-इल्म परिंदों में नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जो हो देखने में टपकती हुई चंद बूँदें
मगर अपनी हद से बढ़े तो बने एक नद्दी बने एक दरिया बने एक सागर
मीराजी
नज़्म
कुछ और भी रौनक़ में बढ़े शोल-ए-तक़रीर
हर दिन हो तिरा लुत्फ़-ए-ज़बाँ और ज़ियादा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इंसाँ जब तक बच्चा है तब तक समझो सच्चा है
जूँ-जूँ उस की उम्र बढ़े मन पर झूट का मेल चढ़े
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दिल में जज़्बा है जवाँ हो कर सभी आगे बढ़ें
अज़्म है ये जान-ओ-दिल से देस की ख़िदमत करें