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नज़्म
ज़िंदगी की तल्ख़ियों ने छीन ली ताब-ए-नज़र
तूर की चोटी पर 'अफ़सर' अब चराग़ाँ है तो क्या
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
हमारे हाल पे लेकिन न रख नज़र ऐ दोस्त
तू अपनी राह-ए-दरख़्शाँ की सम्त देख ज़रा
ज़हीर नाशाद दरभंगवी
नज़्म
ये सुख मैं चाहती हूँ तेरी आँखों में नज़र आए
कि तू इस काएनात-ए-ख़्वाब का हमराज़ बन जाए