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नज़्म
थमे क्या दीदा-ए-गिर्यां वतन की नौहा-ख़्वानी में
इबादत चश्म-ए-शाइर की है हर दम बा-वज़ू रहना
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उमैननुज़ ज़हरा सय्यद
नज़्म
अंजुम सलीमी
नज़्म
अभी ये दिन-रात सर्द-मेहरी के इतने ख़ूगर नहीं हुए हैं
तो फिर ये बे-वज़्न सुब्ह क्यूँ बोझ बन रही है