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नज़्म
सुब्ह-दम बाद-ए-सबा की शोख़ियाँ काम आ गईं
लाला-ओ-गुल को बग़ल-गीरी का मौक़ा मिल गया
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
बताता हालत-ए-रफ़्तार-ए-शब सहरा-नशीनों को
नुजूम-ए-चर्ख़ बन कर कारवाँ-दर-कारवाँ हो कर
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
तड़प रहे हैं जो तूफ़ाँ मिरे ख़यालों में
वो बंद-ए-ज़ब्त-ओ-तहम्मुल से आ न टकराएँ
ख्वाजा मंज़र हसन मंज़र
नज़्म
'मुनीर' आसाँ नहीं है राह-ए-उल्फ़त से गुज़रना भी
ये लाज़िम है कि हो ले ख़ूगर-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ पहले
मुनीर वाहिदी
नज़्म
फ़िरदौस-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ है दामान-ए-लखनऊ
आँखों में बस रहे हैं ग़ज़ालान-ए-लखनऊ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो