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नज़्म
मौत ने रात के पर्दे में किया कैसा वार
रौशनी-ए-सुब्ह वतन की है कि मातम का ग़ुबार
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
टोपी जनेऊ टीका माला छाप तिलक की झूटी हाला
हैं ये सब बाज़ार की चीज़ें नक़ली और बेकार की चीज़ें
अशोक लाल
नज़्म
बहुत दिनों से फूल की ये ख़्वाहिश थी कि उड़ पाए
लुत्फ़ रहेगा जब वो अपनी ख़ुशी से आए जाए
शहनाज़ नबी
नज़्म
ये मई की पहली, दिन है बंदा-ए-मज़दूर का
मुद्दतों के ब'अद देखा इस ने जल्वा हूर का
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
ये धरती ये जीवन-सागर ये संसार हमारा है
अमृत बादल बन के उठे हैं पर्बत से टकराएँगे