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नज़्म
कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़्गन-ए-इल्म
किस के सर जाएगा अब बार-ए-गिरान-ए-उर्दू
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
ख़्वाब-ए-गिराँ से ग़ुंचों की आँखें न खुल सकीं
गो शाख़-ए-गुल से नग़्मा बराबर उठा किया
आल-ए-अहमद सुरूर
नज़्म
सईद अहमद
नज़्म
दिल कोई हर्फ़-ए-ग़लत बन के मिटा जाता है
और हर साँस गिराँ-बार-ओ-पशेमान भी है
मोहम्मद शामिमुज्जामा
नज़्म
हिन्द के बाँके सिपाही अज़्म के कोह-ए-गिराँ
ज़िंदाबाद ऐ फ़ख़्र-ए-मशरिक़ नाज़िश-ए-हिन्दोस्ताँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
वो जिन्हें ताब-ए-गिराँ-बारी-ए-अय्याम नहीं
उन की पलकों पे शब ओ रोज़ को हल्का कर दे