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नज़्म
इक न इक मज़हब की सई-ए-ख़ाम भी होती रही
अहल-ए-दिल पर बारिश-ए-इल्हाम भी होती रही
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बदी पर बारिश-ए-लुत्फ़-ओ-करम नेकी पे ताज़ीरें
जवानी के हसीं ख़्वाबों की हैबतनाक ताबीरें
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आँख है और बारिश-ए-सैलाब-ए-ख़ूँ तेरे बग़ैर
आ कि रुस्वा है मिरा हाल-ए-ज़बूँ तेरे बग़ैर
जौहर निज़ामी
नज़्म
काम था तुझ को न मुतलक़ हस्ती-ए-नाकाम से
थी नवा वाबस्ता तेरी पर्दा-ए-इलहाम से
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
ख़्वाजा-ए-कौनैन की चश्म-ए-करम के फ़ैज़ से
मेरा हर हर शे'र 'शोरिश' पारा-ए-इल्हाम है
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
मिरे ज़ुल्मत-कदे पर बारिश-ए-अनवार कब होगी
ख़ुदा जाने कि अब इंसानियत बेदार कब होगी