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नज़्म
दानिश-ओ-हिक्मत की सारी रौशनी के बावजूद
कम ही मिलता है ज़माने में कम-आज़ार आदमी
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
बावजूद इस के अगर होती नहीं शोहरत नसीब
गालियाँ देता हूँ सब को बौखला जाता हूँ मैं
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
भई, मैं ने अपने हाथों से दफ़्न किया है उसे!
फ़र्क़ ये है कि दफ़्न होने के बावजूद ज़िंदा है वो