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नज़्म
ऐ ग़ाफ़िल तुझ से भी चढ़ता इक और बड़ा ब्योपारी है
क्या शक्कर मिस्री क़ंद गरी क्या सांभर मीठा खारी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
''हर एक करवट मैं याद करता हूँ तुम को लेकिन
ये करवटें लेते रात दिन यूँ मसल रहे हैं मिरे बदन को
गुलज़ार
नज़्म
ज़ुल्फ़ों के ख़्वाब होंटों के ख़्वाब और बदन के ख़्वाब
मेराज-ए-फ़न के ख़्वाब कमाल-ए-सुख़न के ख़्वाब
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मुफ़्लिस का हाल आह बयाँ क्या करूँ मैं यार
मुफ़्लिस को इस जगह भी चबाती है मुफ़्लिसी