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नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
'मुनीर' ईसार पर अपने है तारीख़-ए-जुनूँ नाज़ाँ
मता-ए-ज़िंदगी लुटने का हम मातम नहीं करते
मुनीर वाहिदी
नज़्म
अस्र-ए-हाज़िर में है ऐसा साहिब-ए-तदबीर कौन
बज़्म-ए-गीती की बदल सकता है अब तक़दीर कौन
मुनीर वाहिदी
नज़्म
'मुनीर' आसाँ नहीं है राह-ए-उल्फ़त से गुज़रना भी
ये लाज़िम है कि हो ले ख़ूगर-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ पहले
मुनीर वाहिदी
नज़्म
हकीम जाने वो कैसी हिकमत से आश्ना था
शजीअ जाने कि बदर ओ ख़ैबर की फ़त्ह-मंदी का राज़ क्या था