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नज़्म
बद-मसत बड़ी मतवाली हो हर आन बजाती ताली हो
मय-नोशी हो बेहोशी हो ''भड़वे'' की मुँह में गाली हो
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मगर बद-मस्त है हर हर क़दम पर लड़खड़ाती है
मुबारक दोस्तो लबरेज़ है अब इस का पैमाना
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अरमानों की कलियाँ खिलती थीं आशाओं के दीपक जलते थे
बदमस्त हवाओं के झोंके चलते हुए पंखा झलते थे
नज़ीर बनारसी
नज़्म
जज़्बा-ए-ऐश की हर शोरिश-ए-फ़ानी की क़सम
तुझ को अपनी इसी बद-मस्त जवानी की क़सम
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
जब देखता है वो कहीं बदमस्त पनघट वालियाँ
गालों को जिन के चूमती हैं पतली पतली बालियाँ