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नज़्म
लाखों शक्लों के मेले में तन्हा रहना मेरा काम
भेस बदल कर देखते रहना तेज़ हवाओं का कोहराम
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
तेग़ लहू में डूबी थी और पेड़ ख़ुशी से झूमा था
बाद-ए-बहारी चली झूम के जब उस ने मुझ को देखा था
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
अब्र-ए-गौहर-बार बन कर हिन्द में आया था तू
अहल-ए-दुनिया के लिए पैग़ाम-ए-हक़ लाया था तू