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नज़्म
इस सर-ज़मीं पे भी आग ही के दरिया बहेंगे
जिन मैं कि कोई काग़ज़ की नाव वो सामराज की हो कि मेरी अपनी
अदीम हाशमी
नज़्म
क्या फ़लक में बहेंगे समुंदर कोई
क्या ज़मीं फिर उगाएगी सूरज नए क्या पहाड़ों से निकलेंगी किरनें यहाँ
नदीम अजमल अदीम
नज़्म
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूक के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
हम कि ठहरे अजनबी इतनी मुदारातों के बा'द
फिर बनेंगे आश्ना कितनी मुलाक़ातों के बा'द
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सब पट्टा तोड़ के भागेंगे मुँह देख अजल के भालों के
क्या डब्बे मोती हीरों के क्या ढेर ख़ज़ाने मालों के
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
गरचे मिल-बैठेंगे हम तुम तो मुलाक़ात के बा'द
अपना एहसास-ए-ज़ियाँ और ज़ियादा होगा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में फिर आ बसेंगे
बरहना-पाई वही रहेगी मगर नया ख़ारज़ार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बनेंगे रातों में चाँदनी हम तो दिन में साए बिखेर देंगे
वो चाँद-चेहरा सितारा-आँखें