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नज़्म
अहल-ए-फ़न कहते हैं इस को बहर-ए-ना-पैदा-कनार
और अवामुन्नास कह के सहल इसे करते हैं प्यार
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
इस ज़ियाँ-ख़ाने में कोई मिल्लत-ए-गर्दूं-वक़ार
रह नहीं सकती अबद तक बार-ए-दोश-ए-रोज़गार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सो मैं कमीं-गाह-ए-आफ़ियत में चला गया था
सो मैं अमाँ-गाह-ए-मस्लहत में चला गया था
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
बहर-ए-तूफ़ानी-ए-दुनिया में हैं हम सर-गश्ता
मौज-ए-ग़म में है जहाज़ अपना थिएटर खाता