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नज़्म
मौज-ए-रवाँ हैं मिस्रा-ए-बे-साख़्ता तिरे
बहर-ए-सुख़न में बहर-ए-मोहब्बत का जोश है
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
तिरे लुत्फ़-ओ-अता की धूम सही महफ़िल महफ़िल
इक शख़्स था इंशा नाम-ए-मोहब्बत में कामिल
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
लेकिन इस दिन के लिए ऐ हम-नशीनो दोस्तो
कैसी कैसी बे-बहा क़ुर्बानियाँ देना पड़ीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
अहल-ए-फ़न कहते हैं इस को बहर-ए-ना-पैदा-कनार
और अवामुन्नास कह के सहल इसे करते हैं प्यार
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
इस ज़ियाँ-ख़ाने में कोई मिल्लत-ए-गर्दूं-वक़ार
रह नहीं सकती अबद तक बार-ए-दोश-ए-रोज़गार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बहर-ए-तूफ़ानी-ए-दुनिया में हैं हम सर-गश्ता
मौज-ए-ग़म में है जहाज़ अपना थिएटर खाता