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नज़्म
न पूछ 'इक़बाल' का ठिकाना अभी वही कैफ़ियत है उस की
कहीं सर-ए-राहगुज़ार बैठा सितम-कश-ए-इंतिज़ार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आँख लगती है तो दिल को ये गुमाँ होता है
सर-ए-बालीं कोई बैठा है बड़े प्यार के साथ
हिमायत अली शाएर
नज़्म
अभी इक साल गुज़रा है यही मौसम यही दिन थे
मगर मैं अपने कमरे में बहुत अफ़्सुर्दा बैठा था