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नज़्म
बल्ली-मारां के मोहल्ले की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियाँ
सामने टाल की नुक्कड़ पे बटेरों के क़सीदे
गुलज़ार
नज़्म
जब ख़ुदा का डर नहीं तो फ़िक्र-ए-उक़्बा क्यूँ रहे
फ़ारिग़-उल-बाली में कोई भूका प्यासा क्यूँ रहे
मुख़तसर आज़मी
नज़्म
न इल्म-ओ-आगही न मसनद न इक़्तिदार माँगूँगा
फ़रावानी ग़म से नजात न फ़ारिग़-उल-बाली