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नज़्म
रग-ए-जहाँ में थिरक रही है शराब बन कर तिरी जवानी
दिमाग़-ए-परवर-दिगार में जो अज़ल के दिन से मचल रहा था
मजीद अमजद
नज़्म
रखते हैं जिस की उल्फ़त गाते हैं जिस का नग़्मा
आक़ा-ए-बंदा-पर्वर शाह-ए-दकन हमारा
सुग़रा हुमयूँ मिर्ज़ा
नज़्म
है मिज़ाज उस वक़्त कुछ बिगड़ा हुआ सय्याद का
ऐ असीरान-ए-क़फ़स मौक़ा नहीं फ़रियाद का
राज्य बहादुर सकसेना औज
नज़्म
आप अपने रंग में हैं मैं हूँ अपने रंग में
आप को ऐ बंदा-पर्वर मेरे अफ़्साने से क्या
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
ये मई की पहली, दिन है बंदा-ए-मज़दूर का
मुद्दतों के ब'अद देखा इस ने जल्वा हूर का
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मेरी तारीख़-ओ-अदब ही में नहीं अल्फ़ाज़-ए-लाफ़
बंदा-पर्वर है मुझे कम-माएगी का ए'तिराफ़
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
चाँद निकला है ब-अंदाज़-ए-दिगर आज की शाम
बारिश-ए-नूर है ता-हद्द-ए-नज़र आज की शाम
अरमान अकबराबादी
नज़्म
है अब तक सेहर सा छाया तिरी जादू-नवाई का
दिल-ए-उर्दू पे अब तक दाग़ है तेरी जुदाई का
मयकश अकबराबादी
नज़्म
दलील-ए-सुब्ह-ए-रौशन है सितारों की तुनुक-ताबी
उफ़ुक़ से आफ़्ताब उभरा गया दौर-ए-गिराँ-ख़्वाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये रक़्स-ए-आफ़रीनश है कि शोर-ए-मर्ग है ऐ दिल
हवा कुछ इस तरह पेड़ों से मिल मिल कर गुज़रती है