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नज़्म
मदरसे में अपने हम-उम्रों से वो सरगोशियाँ
बर-महल सरगोशियों के बाद वो ख़ामोशियाँ
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
अफ़्साने जिस के शम-ए-हिदायत थे बर-महल
ना-वक़्त आह हो गया वो लुक़्मा-ए-अजल
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
वो जिन में मुल्क-ए-बर्क़-ओ-बाद तक तस्ख़ीर होता है
जहाँ इक शब में सोने का महल तामीर होता है