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नज़्म
स्कूल ही ऐसा है कि जहाँ कुछ चैन नहीं आराम नहीं
इस वक़्त अगरचे सर में किसी के दर्द बराए नाम नहीं
शौकत परदेसी
नज़्म
वो कोई भी थे मगर बला के नसीब वाले थे
मैं सोचता हूँ कि आने वाले जनम पे अगले बरस न जाने
नोमान बद्र
नज़्म
फ़रेब दे कर चली न जाएँ बड़ी धुएँ-धार हैं घटाएँ
जब आ गई हैं तो जम के बरसे बग़ैर बरसे न लौट जाएँ
नज़ीर बनारसी
नज़्म
उन्हीं हालात में ख़्वाबों की नई नीव रखूँगा
बालों को रंगने की बजाए नए इन्द्र-धनुष रचूँगी
ममता तिवारी
नज़्म
जान ही ठहरी बहा-ए-नाज़ तो ऐ दोस्तो
छोड़ कर ज़र्रों को सूरज ही का सौदा क्यों न हो