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नज़्म
है तो गोरिस्ताँ मगर ये ख़ाक-ए-गर्दूं-पाया है
आह इक बरगश्ता क़िस्मत क़ौम का सरमाया है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल-ए-बरगश्ता को लेकिन ये मैं ने बात समझाई
''नहीं कुछ सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार के फंदे मैं गीराई''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
क़हर तो क्या लुत्फ़ की नज़रों से भी बचता हूँ मैं
तुझ से बरगश्ता नहीं अपने से बरगश्ता हूँ मैं
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
मैं एक पत्थर सही मगर हर सवाल का बाज़-गश्त बन कर जवाब दूँगा
मुझे पुकारो मुझे सदा दो
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
अनार को शब-ए-बरात ने नदी में दफ़्न कर दिया
सदा-ए-बाज़गश्त क़तरा क़तरा कंकरों की तरह ग़र्क़ हो गई